भारत का इतिहास लिखते वक्त जब विकास की चर्चा होगी तो सुलभ इण्टरनेशनल का योगदान प्रमुखता से सामने आयेगा। वास्तव में सुलभ इण्टरनेशनल ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सपनों को साकार तो किया ही है साथ ही देश को सुन्दर भारत-स्वच्छ भारत का रूप प्रदान कर अपने को प्राण-प्रण से समर्पित कर दिया है। सारा देश गवाह है इस बात का कि मनुष्य की जिस मूलभूत आवश्यकता को सुलभ ने महसूस किया शायद किसी ने उस तरफ सोचने की चिंता कभी नहीं की थी। क्योंकि सुलभ के उपयोगकर्ता वास्तव में अधिकतर वे लोग थे जो असहाय निर्बल कमजोर व दलित-शोसित वर्ग से थे। जिनके पास न रहने को छत थी और न समुचित व्यवस्था। फिर सर पर मैला ढोने की कष्टकारक कुप्रथा को समाप्त करना इतना आसान कार्य नहीं था। परन्तु धन्य हैं सुलभ आन्दोलन के प्रणेता डा0 बिन्देश्वर पाठक जिनकी कर्मठता, लगन व मेहनत ने आज सारा देश सुलभमय कर दिया है। आज जब लोग सुलभ के सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग करते हैं तो मन ही मन दुआ देते हैं सुलभ के रचयिता व प्रणेता डा0 बिन्देश्वर पाठक को। लेकिन एक कमी अभी भी महसूस की जा रही है कि यदि जिस प्रकार नगरों को प्रदूषण मुक्त कर स्वच्छ व सुन्दर बनाया गया तथा नागरिकों विशेषकर महिलाओं को सुविधा प्रदान की गई यदि ऐसे ही भारत के उस वर्ग को लाभान्वित कर दिया जाए जहाँ से असली भारत की तस्वीर उभरती है तो शायद वह दिन भारत का सबसे खुशनसीब दिन होगा। भारत के लगभग 560 जिलों में व्यक्तिगत शौलचायों के बनने से भारतीय समाज में व्यापक क्रांति तो होगी ही साथ ही गाँव से नगरों में पलायन अस्वस्वस्थता पर्यावरण प्रदूषण व बेरोजगारी को काफी हद तक रोका जा सकेगा। यह चमत्कार उस राशि से कई गुना अधिक लाभ पहुंचाएगा जो ग्रामवासियों को झेलनी पड़ती है। सुलभ इण्टरनेशनल ने अपने कार्यों से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भारी ख्याति अर्जित की है। वास्तव में सुलभ इण्टरनेशनल 20वीं सदी की एक श्रेष्ठ रचना साबित हुई है।
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